देहरादून। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई), देहरादून के रसायन विज्ञान और जैव पूर्वेक्षण प्रभाग ने उम्मेदपुर, देहरादून में हर्बल नवाचारों के माध्यम से समुदायों को सशक्त बनानाष् शीर्षक से एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम में गंगोत्री कौशल विकास एवं उत्थान समिति, अंबीवाला, देहरादून के गणपति महिला स्वयं सहायता समूह की 28 सदस्य और गोदावरी ग्रामोद्योग, नदी गांव, बागेश्वर, और गढ़ केसरी गुड्स एलएलपी, ऋषिकेश के 02 प्रतिनिधि शामिल हुए।
कार्यक्रम की शुरुआत एफआरआई के रसायन विज्ञान एवं जैव-पूर्वेक्षण प्रभाग के प्रमुख डॉ. वी.के. वार्ष्णेय के उद्घाटन भाषण से हुई, जिन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी और हर्बल समाधानों के महत्व और लाभों पर जोर दिया। ग्रामीण आजीविका में सुधार के लिए हर्बल नवाचारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस दिशा में कार्य करते हुए एफआरआई का उद्देश्य लाभार्थी समूहों और हर्बल उत्पादों के उत्पादन और विपणन में रुचि रखने वाले अन्य लोगों के साथ मूल्यवान ज्ञान और तकनीकी विशेषज्ञता साझा करना है।
कार्यक्रम में प्रभाग के अनुसंधान से उत्पन्न विभिन्न हर्बल नवाचारों पर व्यावहारिक प्रदर्शन और प्रशिक्षण सत्र शामिल थे। डॉ. वी. के. वार्ष्णेय, डॉ. के. मुरली, वैज्ञानिक-बी और कार्यक्रम संयोजक, और टीम के अन्य सदस्य श्री अश्विनी कुमार, तकनीकी अधिकारीय श्री गौरव कुमार, तकनीशियनय और शोधार्थी पीयूष भल्ला, किरण चैहान, और अंजलि भट्ट ने प्रिंसेपियायूटिलिस बीज तेल का उपयोग करके हर्बल साबुन, और हर्बल धूपबत्ती के उत्पादन का प्रदर्शन किया। उन्होंने जंगली अनार के छिलकों से प्राकृतिक रंग निकालने और कपड़ों पर इसके इस्तेमाल का भी प्रदर्शन किया। भोजन, सौंदर्य प्रसाधन और गुलाल में रंग के अन्य अनुप्रयोगों पर भी चर्चा की गई।
इसके अतिरिक्त, प्रतिभागियों को क्यूप्रेससटोरुलोसा से सगंध तेल और प्रिंसेपियायूटिलिस से वनस्पति तेल निकालने के तरीकों और उनके उपयोग के बारे में जानकारी दी गई। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को एक्सटेंशन (घटक-6) कार्यक्रम के तहत भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद द्वारा वित्तीय सहायता से सम्पन्न किया गया था। यह पहल हर्बल नवाचारों को बढ़ावा देकर, स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने, उनके कौशल को बढ़ाने और स्थायी आजीविका के नए अवसर प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रतिभागियों ने अपने आर्थिक हालात सुधारने और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देने के लिए नए ज्ञान को लागू करने की उत्सुकता और आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का समापन प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित करके किया गया।