देहरादून। उत्तराखंड सहित पूरे हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों में लगातार हलचल हो रही है। ग्लेशियरों के पीछे खिसकने और ग्लेशियर लेक की संख्या और उनका आकार बढ़ने की खबरें अब बड़ी संख्या में आने लगी हैं। देहरादून स्थित एडीसी फाउंडेशन की अक्टूबर महीने की उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) रिपोर्ट में ग्लेशियर से संबंधित दो घटनाओं को शामिल किया गया है। इससे पहले भी इसी साल फरवरी और अप्रैल महीने की उदय रिपोर्ट में ग्लेशियर्स से संबंधित घटनाओं को शामिल किया गया था।
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने इस तरह की घटनाओं को बेहद चिंताजनक बताया है और कहा है कि यह स्थिति आने वाले समय में उत्तराखंड में गंभीर समस्या खड़ी कर सकती है। इससे मानव और अन्य जीवों का जीवन प्रभावित हो सकता हैं। उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसीज से नियमित रूप से संवेदनशील ग्लेशियर्स की निगरानी करने और अपनी जाँच का दायरा बढ़ाने की मांग की है। इसके साथ उन्होंने पूर्व में उदय रिपोर्ट का हवाला देते हुए उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग से राज्य में व्याप्त ग्लेशियर रिस्क्स पर समस्त हितधारकों के साथ विस्तृत अपडेट प्रस्तुत करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है।
पीछे हट रहे हिमालयी ग्लेशियरः
अक्टूबर महीने की उदय रिपोर्ट के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर के पीछे हटने से ग्लेशियल झील के फटने और अचानक बाढ़ आने का खतरा बढ़ गया है। वैज्ञानिक पत्रिकाओं के प्रतिष्ठित प्रकाशक स्प्रिंगर द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियर के पीछे हटने से इस क्षेत्र में ग्लेशियल झील के फटने से बाढ़ (जीएलओएफ) का खतरा बढ़ रहा है।
कश्मीर विश्वविद्यालय के सुहैल ए लोन और जी जीलानी द्वारा लिखित इस अध्ययन में जलवायु की दृष्टि से अलग-अलग दो घाटियों – कश्मीर हिमालय में लिद्दर बेसिन और लद्दाख में सुरू बेसिन की तुलना की गई है, ताकि हाल के दशकों में ग्लेशियर की स्थिति और क्षेत्रों में हुए बदलावों की जांच की जा सके।
अक्टूबर की उदय रिपोर्ट में पिंडारी ग्लेशियर पिछले 60 सालों में आधा किलोमीटर से ज्यादा पीछे खिसकने संबंधी खबर को भी शामिल किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि मानवीय हस्तक्षेप में लगातार वृद्धि के कारण ग्लेशियर साल दर साल पीछे खिसक रहे हैं। 60 साल पहले ग्लेशियर का जहां जीरो प्वाइंट हुआ करता था, वहां अब भुरभुरे पहाड़ दिखाई देते हैं। ये परिवर्तन पर्यावरणीय बदलावों को उजागर करते हैं जो ग्लेशियर के पीछे हटने और प्राकृतिक और मानवीय कारकों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को दर्शाते हैं।
पहले भी हुआ ग्लेशियर का जिक्रः
उदय की मासिक रिपोर्टों में पहले भी ग्लेशियर से संबंधित हलचलों को जगह दी गई थी। फरवरी 2024 की रिपोर्ट कहती है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा गठित एक समिति ने उत्तराखंड में 13 संभावित रूप से खतरनाक ग्लेशियर झीलों की पहचान की थी। 12 फरवरी, 2024 को आपदा प्रबंधन विभाग के तत्कालीन सचिव रंजीत सिन्हा ने संबंधित विभागों और संस्थानों के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के साथ राज्य में ग्लेशियर झीलों की स्थिति और इससे जुड़ी खतरों का मूल्यांकन करने के लिए एक बैठक की। बैठक के दौरान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने बताया कि कई ग्लेशियर झीलें गंगोत्री ग्लेशियर के पास स्थित हैं, जिनमें से कुछ को ष्बहुत खतरनाकष् के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उन्होंने विशेष रूप से वसुंधरा झील का उल्लेख किया, जिसमें इसके ष्उच्च स्तर के खतरेष् और ष्नियमित निगरानी के लिए अवलोकन उपकरण स्थापित करने की आवश्यकता की बात की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के भारतीय रिमोट सेंसिंग संस्थान के विशेषज्ञों ने, जो मंदाकिनी, भागीरथी और अलकनंदा नदियों के पास स्थित ग्लेशियरों के आस-पास बनने वाली झीलों की निगरानी करते हैं, यह नोट किया कि विशेष रूप से केदारताल, भिलंगना और गोरी गंगा ग्लेशियरों में विस्तार हो रहा है।
तुंगनाथ मंदिर में रिसावः
अक्टूबर 2024 की उदय रिपोर्ट में तुंगनाथ मंदिर में पानी का रिसाव होेने, मंदिर के धंसने और नींव कमजोर होने की खबर को भी शामिल किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से संपर्क किया। संगठनों ने सितंबर में साइट का निरीक्षण करने के लिए टीमें भेजीं। स्थिति का आकलन करने के बाद, उन्होंने मंदिर को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए मंदिर समिति को अपनी सिफारिशें दी हैं। अब यह मंदिर समिति और राज्य सरकार पर निर्भर है कि वे आवश्यक कार्रवाई करें। अक्टूबर की उदय रिपोर्ट में बद्रीनाथ हाईवे के निर्माणाधीन हेलंग-मारवाड़ी बाईपास पर हुए भूस्खलन को भी शामिल किया गया है। यह घटना 12 अक्टूबर को हुई।