देहरादून, नीरजकोहली: विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2023 के छठे दिन के कार्यक्रम की शुरूआत विरासत साधना के साथ हुआविरासत महोत्सव स्कूली बच्चों के लिए अपनी प्रतिभा दिखाने का एक बहुमूल्य अवसर हैआज प्रतिभागियों ने नृत्य श्रेणि में अपना शानदार प्रदर्शन देकर लोगो को मानमोहित किया नृत्य श्रेणी में स्कूल एवं विश्वविद्यालय के छात्रों ने भाग लिया, जिसमें से पहली प्रतिभागी थी ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय कि कृति यादव ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी, दूसरी प्रस्तुती दून विश्वविद्यालय की श्रृष्टि जोशी जिन्होंने कथक नृत्य का प्रदर्शन कियातदुपरांत घुंघरू कथक संगीत माहाविद्यालय की आंशिका वर्मा ने कथक, दून इंटरनेशनल की रितवि आर्य ने भरतनाट्यम, न्यू दून ब्लॉसम्स स्कूल की नंदनी बिस्ट ने कथक, केंद्रीय विद्यालय ओएनजीसी की अनन्या सिंह ने भरतनाट्यम, देहरादून नेशनल अकेडमी ऑफ डिफ़ेंस की समृद्धि नौटियाल ने भरतनाट्यम, द हेरिटेज स्कूल नॉर्थ कैंपस की ऐश्वर्य पोखरियाल ने कथक , स्कॉलर्स हब डिफेंस इंस्टीट्यूट की तमन्ना रावत ने कथक, पीवाईडीएस लर्निंग एकेडमी की अर्पिता थप्लि ने कथक , दून ग्लोबल स्कूल की प्रेक्षा मित्तल जी ने भरतनाट्यम, मॉडर्न पब्लिक स्कूल की देवयनशि चौहान ने कथक, दिल्ली पब्लिक स्कूल देहरादून की अवनि गुप्ता ने भरतनाट्यम, दी दुन प्रेसीडेंसी स्कूल प्रेमनगर की हिमांशी ने भरतनाट्यम, सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल की ओजस्विनि भट्ट ने कथक , हिल फाउंडेशन स्कूल की अनुष्का चौहान ने भरतनाट्यम और फील्फोट पब्लिक स्कूल देहरादून की मोलश्री राणा ने ओडिसि नृत्य की प्रस्तुति की। विरासत साघना के आयोजक श्री घनश्याम जी ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किये और प्रतिभागियों का साहास बढ़ाया।आज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभांरंभ डॉ. निशात मिश्रा, डीन, यूपीईएस, आनंद बर्धन, आईएएस एवं राजा रणधीर सिंह, एशिया ओलंपिक परिषद के अंतरिम अध्यक्ष ने दीप प्रज्वलन के साथ किया एवं उनके साथ रीच विरासत के महासचिव श्री आर.के.सिंह एवं अन्य सदस्य भी मैजूद रहें सांस्कृतिक कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति में ’अभ्यास समूह’ कृष्ण मोहन महाराज जी द्वारा गणपति वंदना के साथ हुई, इसके बाद दरबारी, शाही दरबार में किया जाने वाला कथक नृत्य, कृष्ण मोहन जी द्वारा ग़ज़ल पर नृत्य, एक तराना और एक सूफी कलाम, अमीर खुसरू द्वारा छाप तिलक प्रस्तुत किया गया। ’अभ्यास समूह’ की ओर से मीनू गारू, हीना भसीन, जया पाठक, निधि भारद्वाज, नेहा भगत, देविका दीक्षित, अक्षिका सयाल ने सहयोग किया।
नर्तकियों के परिवार में जन्मे पंडित कृष्ण मोहन महाराज, प्रसिद्ध कथक गुरु पंडित शंभु महाराज के सबसे बड़े पुत्र और पंडित बिरजू महाराज के चचेरे भाई हैं। वह लखनऊ के प्रतिष्ठित कालका बिंदादीन घराने से हैं और अपनी तकनीकी कुशलता के लिए प्रसिद्ध हैं। वह नई दिल्ली, भारत में राष्ट्रीय कथक नृत्य संस्थान, कथक केंद्र के गुरुओं में से एक हैं। ’अभ्यास’, कला, संस्कृति और सामाजिक कल्याण का एक संघ है, जिसकी स्थापना 2008 में गुरु किशन मोहन मिश्रा ने की थी। सारंगी और तबला कथक के संगीत समूह का अभिन्न अंग रहे हैं। यदि तबला, कथक के बोल, स्मृति-विद्या का अनुकरण करता है, तो सारंगी अपने संगीतमय स्वर के साथ नृत्य किए जा रहे ताल के समय-चक्र में माधुर्य जोड़कर समय को बनाए रखने में मदद करती है। गुरु किशन मोहन युवा प्रतिभाओं को बढ़ावा देने और उनका पोषण करने में विश्वास रखते हैं। अभ्यास के सुप्रशिक्षित नर्तकों की समूह प्रस्तुति का शाब्दिक अर्थ है “करत करत अभ्यास के / जड़मति होठ सुजान“, या ’अभ्यास मनुष्य को पूर्ण बनाता है’।सांस्कृतिक कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति दक्षिण अफ़्रीका से नृत्य कलाकारों की टुकड़ी, त्रिभंगी नृत्य रंगमंच की रही। त्रिभंगा डांस थिएटर ने कुछ पीढ़ियों से चले आ रहे अफ्रीकीभारतीय संबंध का जश्न मनाते हुए एक ऊर्जावान नृत्य के साथ प्रदर्शन की शुरुआत की। नर्तक प्रिया नायडू, टीमलेट्सो खलाने, कैरोलिन गोवेंडर, मोंटूसी मोटसेको, टीबाहो मोगोत्सी और सोलोमन स्कोसना ने साथ में सहयोग किया एव उनके साथ कार्यक्रम के निदेशक जयस्पेरी मूपेन मौजूद रहे।
त्रिभंगी डांस थिएटर का काम दक्षिण अफ़्रीकी संदर्भ में भारतीय नृत्य की विरासत में मिली धारणाओं को लगातार चुनौती देता है। त्रिभंगी नृत्य शैलियों का एक पूरा मिश्रण दिखाता है जहां नर्तक प्रत्येक संस्कृति के प्रति पूर्ण सम्मान और संवेदनशीलता दिखाते हुए राष्ट्र निर्माण और सामाजिक एकजुटता के आधार पर काम करते हुए एक अंतर-सांस्कृतिक संवाद में एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं। जयस्पेरी मूपेन के प्रेरित निर्देशन के तहत, त्रिभंगी डांस थिएटर एक समकालीन नृत्य कंपनी है जो मूल दक्षिण अफ़्रीकी कोरियोग्राफी के निर्माण और प्रदर्शन के लिए समर्पित है। कंपनी का प्राथमिक फोकस नए काम का निर्माण और रचनात्मक प्रक्रिया में भागीदारी के माध्यम से नर्तकियों और अन्य सहयोगियों का विकास है। त्रिभंगी डांस थिएटर का दृढ़ विश्वास है कि कला मानव, सामाजिक और आर्थिक और विकास में अत्यधिक योगदान देती है। त्रिभंगी नृत्य रंगमंच कलाकार के रूप में वे देश के भीतर खुद को परिभाषित करने और स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, वे एक ऐसी पहचान की दिशा में प्रयोग और खोज कर रहे हैं जो अभी भी बन रही है। यह सांस्कृतिक इतिहास का एक मार्कर भी है। उन्नीसवीं सदी के मध्य से, अफ़्रीका बड़ी संख्या में दक्षिण एशियाई लोगों का घर रहा है, मुख्यतः गिरमिटिया मज़दूरी और उसके परिणामस्वरूप होने वाले प्रवासन के कारण। युगांडा और केन्या जैसे कुछ नव स्वतंत्र देशों से ब्रिटेन में माध्यमिक प्रवास के बावजूद, कई लोग वहीं रह गए और दक्षिण अफ्रीका वर्तमान में लगभग 1.3 मिलियन दक्षिण एशियाई विरासत का घर है। अपने पीछे इस इतिहास के साथ, भरतनाट्यम, अफ्रीकी और समकालीन नृत्य में अपनी जड़ों के साथ त्रिभंगी डांस थिएटर की एक ऐसी प्रतिध्वनि है जो मनोरंजन से कहीं आगे तक जाती है। कलाकारों ने एक असंभावित संलयन के साक्ष्य के रूप में सकारात्मक ऊर्जा की लहरें छोड़ीं, जिसे एक व्यवहार्य रूप मिल गया है।
कलात्मक निर्देशक, जयस्पेरी मूपेन, कंपनी के मिशन को भारतीय नृत्य के बारे में प्रयोग, अन्वेषण और चुनौती देने के रूप में देखते हैं। कलाकार भारतीय और अफ्रीकी विरासत से आते हैं, जो पारंपरिक नृत्य के दोनों रूपों में कुशल हैं और एक अच्छे समकालीन नृत्य आधार के साथ हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम की तीसरी प्रस्तुति कौशिकी चक्रवर्ती की रही, कौशिकी जी ने अपने कार्यक्रम की शुरुआत राग यमन कल्याण से की। कौशिकी ने झप ताल में बड़े गुलाम अली खां साहब के तराना सहित मधुर प्रस्तुति से मंत्रमुग्ध करना जारी रखा। उनकी अगली प्रस्तुति आड़ा चौटाल में बंदिश रही जो “शारदे बागेश्वरी“ थी उसके बाद उन्होंने राग पहाड़ी में रूपक बंदिश पेश किया। कौशिकी जी के साथ सारंगी पर मुराद अली, तबले पर ईशान घोष, हारमोनियम पर पारोमिता मुखर्जी, तानपुरा पर अदिति बछेती और सृष्टि कला ने सहयोग किया। कौशिकी चक्रवर्ती एक भारतीय शास्त्रीय गायिका और संगीतकार हैं। उन्होंने संगीत अनुसंधान अकादमी में शिक्षा ली और वह पटियाला घराने के शागिर्दों में से एक है। उनके प्रदर्शनों की सूची में शुद्ध शास्त्रीय, ख्याल, दादरा, ठुमरी और भारतीय संगीत के कई अन्य रूप भी शामिल हैं। वह एशिया-प्रशांत श्रेणी में विश्व संगीत के लिए 2005 में बीबीसी रेडियो से 3 पुरस्कार की प्राप्त कर चुकी हैं। वह हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिक, अजॉय चक्रवर्ती की बेटी हैं और उन्होंने उनके साथ-साथ अपने पति पार्थसारथी देसिकन के साथ भी प्रदर्शन किया है। 2020 में उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कौशिकी एक प्रशिक्षित कर्नाटक शास्त्रीय गायिका भी हैं। कौशिकी चक्रवर्ती दो साल की उम्र से ही संगीत में रुचि दिखाई और उन्होंने 7 साल की उम्र में अपना पहला गाना सार्वजनिक रूप से गाया,जो एक तराना था। 1980 के दशक के उत्तरार्ध से वह अपने पिता के साथ संगीत प्रदर्शन के विश्व दौरों पर गईं। दस साल की उम्र में, उन्होंने ज्ञान प्रकाश घोष की अकादमी में भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया, जो उनके पिता के गुरु भी थे। बाद में, वह आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी में शामिल हो गईं, जहां से उन्होंने 2004 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और उनके पिता ने उन्हें कोलकाता में श्रुतिनंदन संगीत विद्यालय में प्रशिक्षित किया। वह न केवल ख्याल और ठुमरी प्रस्तुत करने में माहिर हैं, बल्कि उन्होंने 2002 से संगीत विद्वान बालमुरली कृष्णन से कर्नाटक संगीत भी सीखा है।