देहरादून। पेरिस, यूनेस्को मुख्यालय विश्व बौद्ध संघ और यूनेस्को पीस चेयर्स के सहयोग से पेरिस के यूनेस्को मुख्यालय में बीते 28-29 अक्टूबर को आयोजित ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन में विश्व के आध्यात्मिक नेताओं, विद्वानों और शांति समर्थकों ने भाग लिया। इस महत्वपूर्ण आयोजन ने वैश्विक शांति को बनाए रखने में बौद्ध शिक्षाओं की प्रासंगिकता को रेखांकित किया, जो करुणा, समझ और एकता के सिद्धांतों पर आधारित है। इस अवसर पर विश्व थेरवाद बौद्ध केंद्र, देहरादून के अध्यक्ष और भारत सरकार के सलाहकार डॉ. एम.के. ओटानी ने मुख्य भाषण दिया। उन्होंने अपने संबोधन में बौद्ध धर्म की सार्वभौमिक शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत में उत्पन्न तथागत बुद्ध की शिक्षाएं सांस्कृतिक सीमाओं से परे हैं और आज भी राष्ट्रों के बीच सद्भावना और शांति स्थापित करने के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं।
डॉ. ओटानी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हाल ही में पाली भाषा को भारत में शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने पर विशेष रूप से जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय केवल भाषा संरक्षण का कार्य नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर और बौद्ध परंपरा के प्रति सम्मान का प्रतीक है। पाली भाषा, जो बौद्ध धर्मग्रंथों और शिक्षाओं का मूल आधार है, को शास्त्रीय दर्जा देकर भारत ने बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक महत्व को सम्मानित किया है और उन देशों के बीच साझा समझ और आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया है जिन पर बौद्ध परंपरा का प्रभाव है। इस पहल से बुद्ध की शिक्षाओं को उनकी मूल भाषा में समझने का अवसर मिलेगा, जो आने वाली पीढ़ियों को करुणा और अहिंसा के बौद्ध सिद्धांतों को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करेगा।
प्रधानमंत्री मोदी की इस दूरदर्शी सोच की सराहना करते हुए, डॉ. ओटानी ने कहा कि उनके नेतृत्व में भारत ने बौद्ध धर्म के इस शांति और सहिष्णुता के संदेश को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के समर्पण की सराहना की और कहा कि प्रधानमंत्री का यह प्रयास न केवल भारत के सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देता है बल्कि विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक सेतु भी निर्मित करता है। डॉ. ओटानी ने इस बात पर विश्वास व्यक्त किया कि पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने जैसे प्रयासों से प्रधानमंत्री मोदी बुद्ध की शिक्षाओं को वैश्विक स्तर पर प्रसारित करने और शांति की नींव को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह सम्मेलन बौद्ध परंपराओं के विभिन्न प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाया, जो शांति, करुणा और एकता के सिद्धांतों के प्रति समर्पित थे। यूनेस्को में यह ऐतिहासिक आयोजन न केवल बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता को पुनर्स्थापित करता है, बल्कि वैश्विक शांति और सद्भाव के क्षेत्र में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को भी प्रदर्शित करता है। इस सम्मेलन के माध्यम से बौद्ध धर्म की शिक्षाओं द्वारा एक शांतिपूर्ण और समृद्ध विश्व के निर्माण का आह्वान किया गया है, जो करुणा और आपसी सम्मान के सिद्धांतों से समृद्ध है।