प्रयागराज: अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को महज 18 सेकेंड के भीतर मौत की नींद सुला दिया गया। शूटरों ने दोनों के पुलिस जीप से उतरने के 32वें सेेकंड में पहली गोली दागी। इसके बाद लगातार कुल 20 गोलियां दागीं और 50वें सेकंड तक माफिया भाइयों का काम तमाम हो चुका था। अतीक व अशरफ को 10.36 मिनट पर लेकर पुलिस कॉल्विन अस्पताल के गेट पर पहुंची। 10.37 मिनट और 12 सेकंड पर दोनों पुलिस जीप से नीचे उतर चुके थे। इसके बाद पुलिस उन्हें लेकर अस्पताल के भीतर जाने लगी।
ठीक 32वें सेकंड यानी 10.37 मिनट और 44 सेकंड पर शूटरों ने पहली गोली दागी। इसके बाद ताबड़तोड़ 20 राउंड फायर अतीक और अशरफ को निशाना बनाकर किए गए। 18 सेकंड में वारदात को अंजाम देकर शूटर अपने मकसद में कामयाब हो चुके थे। 10.38 मिनट और 02 सेकेंड पर अतीक और अशरफ दोनों लहूलुहान होकर जमीन पर लुढ़के पड़े थे और उनके शरीर बेजान हो चुके थे। उत्तर प्रदेश की सियासत में बड़ा नाम रहे माफिया अतीक अहमद और उसके छोटे भाई अशरफ की शनिवार देर रात गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके साथ ही प्रयागराज में माफिया के एक अध्याय का खत्मा हो गया। यह पहली बार नहीं है, जब प्रयागराज में इस तरह की वारदात हुई है। ऐसी एक-दो नहीं, बल्कि चार वारदातें हुई हैं, जब इलाहाबाद यानी आज का प्रयागराज गोलियों की आवाज से थर्राया है। इनकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी है। इसकी शुरुआत आज से 27 साल पहले ही हो गई थी, जब पहली बार इलहाबाद की सड़कों पर सरेराह एके-47 की आवाज शहर के सबसे पॉश इलाके में सुनी गई थी।
यह सारी कहानियां किसी ओटीटी प्लेटफार्म के क्राइम थ्रिलर की तरह हैं। जिस पर कई वेब सीरीज तक बनाई जा सकती हैं। दरअसल, इलाहाबाद में बालू के ठेकों से शुरू हुआ विवाद वर्चस्व की लड़ाई तक पहुंचा। इसके बाद 90 के दशक में पहली बार सुपारी किलिंग हुई। बात की शुरुआत भी सबसे पहले और राजनीति में बड़ा कद रखने वाले जवाहर यादव पंडित हत्याकांड से। सपा के बाहुबली नेताओं में शामिल और झूंसी से विधायक जवाहर यादव पंडित की 13 अगस्त 1996 को दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यह पहली बार था, जब किसी हत्याकांड में एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियार का इस्तेमाल हुआ था।
ये तत्कालीन इलाहाबाद के डरावने इतिहास का सबसे खतरनाक हत्याकांड था। उस दौर में प्रयागराज का विस्तार हो रहा था। नई कॉलोनियां आकार ले रहीं थीं। तभी शहर के सबसे पॉश इलाके सिविल लाइंस की शाम गोलियों की आवाज से गूंज उठी। सपा विधायक जवाहर पंडित के साथ ही उनके चालक गुलाब यादव और एक राहगीर कमल दीक्षित की गोली लगने से मौत हो गई। हमलावरों ने तब तक गोलियां चलाईं, जब तक खून शरीर से गाढ़ा होकर निकलना बंद नहीं हो गया। इसमें कृष्णानंद राय का नाम आया और इसकी गूंज सियासी गलियारों में लंबे दौर तक सुनाई देती रही।
वर्चस्व की लड़ाई से शुरू हुआ सफर आगे भी जारी रहा। इस बार बदले की भावना के साथ अति महत्वकांक्षा भी थी। जब 18 साल बाद फिर एक राजनेता के खून से इलाहाबाद की सड़कें लाल हो चुकी थीं। इस बार निशाने पर इलाहाबाद पश्चिम से बसपा के टिकट पर साल 2004 में चुनाव जीते विधायक राजू पाल थे। राजू पाल किसी समय अतीक अहमद के काफी करीबी हुआ करते थे, लेकिन उन्होंने 2002 में उनके खिलाफ चुनाव लड़ा और हार गए। अतीक 2004 में इस्तीफा देकर सांसद बना और अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को मैदान में उतारा। अशरफ बसपा के राजू पाल से चुनाव हार गया, बस यहीं से एक नए खूनी सफर की शुरुआत हुई।
पांच बार इस सीट से विधायक रहे अतीक और उनके परिवार से इसे अपनी आन पर ले लिया। अशरफ इसमें मुख्य भूमिका में था। 25 जनवरी, 2005 को विधायक राजू पाल स्वरूप रानी नेहरू (एसआरएन) अस्पताल से अपने घर लौट रहे थे। अस्पताल से निकलने के बाद अपनी गाड़ी में बैठे। गाड़ी खुद राजू पाल ही चला रहे थे। इस दौरान कुछ लोग स्कार्पियो से उनका पीछा कर रहे थे। रास्ते में राजू पाल अपने समर्थक की बहन को लिफ्ट देने रुकते हैं। धूमनगंज क्षेत्र में नेहरू पार्क के थोड़ा आगे बढ़ते हैं। तभी हमलावर उन्हें ओवरटेक करते हैं और चंद सेकेंड में ही फायरिंग शुरू हो जाती है।
बताया जाता है कि करीब 25 हमलावर थे। उन्होंने इतनी गोलियां बरसाईं कि किसी को संभलने का मौका तक नहीं मिला। इसके बाद राजू पाल को टेंपो से अस्पताल लेकर भागे, लेकिन हमलावर कई किमी तक टेंपो पर भी फायरिंग करते रहे। अस्पताल पहुंचते-पहुंचते राजू पाल का शरीर छलनी हो चुका था। पोस्टमार्टम में उनके शरीर में 15 गोलियां मिलीं। वहीं इस हमले में उनके दो बॉडीगार्ड संदीप यादव और देवीलाल की भी मौत हो गई। विधायक राजू पाल की नौ दिन पहले ही शादी हुई थी।
विधायक राजू पाल की हत्या में सबसे बड़े गवाह थे, उनके बचपन के दोस्त उमेश पाल। उमेश पाल की 24 फरवरी को ही प्रयागराज में उनके सुलेम सराय स्थित घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। उमेश जिला कोर्ट में वकील थे। हमलावरों ने उन पर गोलियां और बम बरसाए। इसमें उमेश को संभलने का मौका नहीं मिला। इसमें अतीक के साथ ही तीसरे नंबर के बेटे असद का नाम सामने आया। सीसीटीवी में उसका फुटेज भी दिखाई दिया। इसके बाद पुलिस ने एक दिन पहले ही गुरुवार को उसे एनकाउंटर में ढेर कर दिया। माना जा रहा है कि राजनीति के वर्चस्व की यह लड़ाई अब अतीक और अशरफ की हत्या के साथ खत्म हो चुकी है, लेकिन हालात अभी भी बहुत ठीक नहीं हैं।