देहरादून। भा.वा.अ.शि.प, देहरादून में वन गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार के माध्यम से पारितंत्र सेवाओं की संवृद्धि और स्लेम ज्ञान का प्रसार पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे दिन, भारत, मलेशिया, थाईलैंड, जापान और म्यांमार के वक्ताओं द्वारा दो अलग-अलग सत्रों में वानिकी से संबंधित तेरह अलग-अलग विषयों को प्रस्तुत किया गया। उत्पादकता वृद्धि के लिए नर्सरी प्रबंधन और पौधरोपण तकनीकों पर सत्र के अंतर्गत भारत, थाईलैंड और मलेशिया के विशेषज्ञों द्वारा उत्पादकता बढ़ाने के लिए नर्सरी और वृक्षारोपण तकनीकों पर जोर दिया गया और गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की आसान उपलब्धता की आवश्यकता बताई गयी। भा.वा.अ.शि.प. ने यूकेलिप्टस, कैजूरिना, पॉपलर, डेलबर्जिया, मीलिया और अन्य स्वदेशी वृक्ष प्रजातियों की 69 क्लोनध्किस्में जारी की हैं। इनका उपयोग पारि-पुनर्स्थापन, वृक्षारोपण और कृषि वानिकी में किया जा सकता है। इस बात पर जोर दिया गया कि क्लोन की विविधता, आनुवंशिक आधार को बनाए रखने में मददगार होगी। थाईलैण्ड के वक्ता ने सागौन की लघु चक्रीय खेती के अवसरों की चर्चा करते हुए बताया कि सागौन की उत्पादन अवधि 40 वर्ष से घटाकर 6 वर्ष की जा सकती है। एफआरआई, मलेशिया के वक्ता द्वारा केस स्टडी के रूप में अवक्रमित क्षेत्रों के पुनर्वास में शोरिया रॉक्सबर्घाई की क्षमता के बारे में चर्चा की गई।
वन गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार हेतु वन भूमि पुनर्स्थापन तकनीकों पर तीसरे सत्र में, एफआरआई, मलेशिया के विशेषज्ञ ने एक अग्रणी प्रजाति, मकारंगा टैनारियस का उपयोग करके भूमि पुनर्स्थापन में सफलता पर चर्चा की। आईयूसीएन के प्रतिनिधि ने पारि-पुनर्स्थापन के प्रभाव और ईकोसिस्टम ट्रेड ऑफ के आकलन के लिए “रेस्टोरेशन ऑफ ऑपर्च्युनिटीज ऑप्टिमाइजेशन टूल” (रूट) जैसे नवोन्मेषी उपकरणों का उपयोग करके 2030 बॉन चैलेंज को पूरा करने के लिए की गई पहल पर चर्चा की। नेपाल में सामुदायिक वानिकी के माध्यम से वन पुनर्स्थापन के प्रयासों की सफलता की कहानी के साथ-साथ पर्वतीय परिदृश्य पुनर्स्थापन के लिए वित्तपोषण तंत्र में सरकार की भूमिका पर नेपाल के वक्ताओं द्वारा जोर दिया गया। ग्रामीण भारत के कायाकल्प के लिए परिदृश्य को फिर से जीवंत करने में पारिस्थितिकी तंत्र आधारित अनुकूलन की भूमिका, और विभिन्न वनों द्वारा समर्थित कोर मॉडल और गुजरात में पर्यावरण-पुनर्स्थापना के लिए सर्वोत्तम पद्धतियों को प्रस्तुत किया गया। म्यांमार के वक्ता ने मैंग्रोव पारितंत्र के बारे में बताते हुए सतत भूमि और पारितंत्र प्रबंधन में अवसरों के बारे में चर्चा की। वन पारितंत्र सेवाओं को बहाल करने में ईको-बजट की भूमिका और इसके मूल्य का आकलन करने की आवश्यकताओं को कर्नाटक की एक केस स्टडी के माध्यम से समझाया गया।