देहरादून। सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को अपने जीवन के स्वर्णिम वर्ष देकर एक हफ्ता पहले वापस अपनी जन्मभूमि और ग्रह प्रदेश पधारे परंतु भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश इकाई ने जिस गर्मजोशी से अपने वेटरन सिपाही का स्वागत करना चाहिए था वह नहीं किया यह कहना है उत्तराखंड कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी का।
दसौनी ने कहा की कोश्यारी का यह हश्र भारतीय जनता पार्टी का चरित्र उजागर करने के लिए काफी है जो कोश्यारी प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं में शरीक हैं और अपने व्यापक ज्ञान और अनुभव की वजह से किसी संस्थान से कम नहीं है।
कई महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं देने के अलावा उत्तराखंड में एक समय पर किंग मेकर की भूमिका में रहे,वापस अपने प्रदेश लौटने पर उनके अपने लोगों ने ही उनसे दूरी बना ली। वहीं दूसरी ओर प्रदेश के कई लोगों को फर्श से अर्श तक पहुंचाने में जो महत्वपूर्ण योगदान
कोशियारी का रहा है उससे इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में कोश्यारी की काबिलियत और क्षमता का पूरी तरह से दोहन करने के बाद जिस तरह से आज उनके इस्तीफे के बाद उन्हें दूध में से मक्खी की तरह निकाल दिया गया और जिस तरह का फीका स्वागत किया गया वह अपने आप में अचंभित करने वाला है। दसौनी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की यही परिपाटी रही है अपने जीवन के स्वर्णिम वर्ष जिन लोगों ने पार्टी को स्थापित करने में खपा दिए उनको उनके जीवन के कमजोर क्षणों में पार्टी अनदेखा कर देती है या फिर मार्गदर्शक मंडल में डाल देती है।
दसोनी ने कहा की अफसोस जनक बात यह है की फौज में भी अपनी सेवाएं देने के बाद जब एक सिपाही सेवानिवृत्त होकर अपने घर लौटता है तो उसका ढोल नगाड़ों, फूल मालाओं से और मिठाईयां बांट कर स्वागत किया जाता है परंतु कोश्यारी को उनकी पार्टी ने उस लायक भी नहीं समझा।
दसौनी ने कहा कि एक चैंकाने वाली बात यह भी रही कि राजनीतिक गलियारों में कोश्यारी वर्तमान मुख्यमंत्री के गुरु या गॉडफादर के रूप में जाने जाते है परंतु मुख्यमंत्री जी को भी कोश्यारी जी से मुलाकात करने का समय 5 दिन बाद मिला। शायद यही दुनिया का नियम है और ऐसे ही अवसरवादीता कहते हैं। दसोनी ने कहा कि निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता और कोश्यारी का समर्थक आज उधेड़ बुन और किंकर्तव्य विमूड होगा कि जब कोश्यारी जैसे समर्पित नेताओं का पार्टी में यह हश्र है तो उनका भविष्य इस पार्टी में कितना सुरक्षित और संरक्षित रह पाएगा। दसौनी के अनुसार स्वयं कोश्यारी जी को भी इस बात का शायद आभास नहीं था की उम्र की इस दहलीज पर उनके साथ उन्ही की पार्टी इस तरह का तल्ख बर्ताव करेगी वह भी तब जब उन्होंने ताउम्र अविवाहित रहकर पार्टी की सेवा की ऐसे में निश्चित रूप से उनकी अपने दल से अपेक्षा रही होगी कि वानप्रस्थ में पार्टी उन्हें संरक्षण देगी पर ये हो न सका। शायद यही जीवन का सार और कड़वा सत्य हैं।