देहरादून। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 19 जून को सिकल सेल एनीमिया जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इसके अंतर्गत जनपद देहरादून में निवासरत शत प्रतिशत जनजातीय जनसंख्या की सिकल सेल अनीमिया जांच की जानी है। इस हेतु जनपद के समस्त सा0 स्वास्थ्य केन्द्रों, प्रा0 स्वास्थ्य केन्द्रों, आयुष्मान आरोग्य मंदिर में सिकल सेल जांच शिविरों का आयोजन किया जाना प्रस्तावित है। जनपद देहरादून के में जनजातीय समुदाय के जन्म से लेकर 40 वर्ष तक के लाभार्थियों की सिकल सेल जांच की जानी प्रस्तावित है। वर्ष 2024-25 हेतु जनपद देहरादून जनपद में जांच का लक्ष्य 34324 रखा गया है। 19 जून से 03 जुलाई तक सिकल सेल एनीमिया जागरूकता हेतु विशेष अभियान का संचालन किया जायेगा। जिस दौरान 10500 लाभार्थियों की सिकल सेल जांच की जायेगी।
जागरूकता अभियान का शुभारम्भ 19 जून 2024 को विकासनगर ब्लॉक के शेरपुर ग्राम पंचायत में आयोजित किया जायेगा। जिसमें आशा कार्यकत्री, ए.एन.एम., सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी, स्कूल हेल्थ टीम, किशोर स्वास्थ्य काउंसलर द्वारा जनजागरूकता अभियान चलाया जायेगा। स्कूल हेल्थ टीम द्वारा समुदाय स्तर पर तथा सी0एच0ओ0 द्वारा आयुष्मान आरोग्य मंदिर में सिकल सेल जांच की जाएगी।
सिकल सेल एनीमिया रक्त से संबंधित एक अनुवांशिक रोग है। इस रोग में रक्त में उपस्थित लाल रक्त कोशिकाओं का आकार विकृत होकर हंसिये के समान हो जाता है तथा अंततः ये कोशिकाएं कमजोर होकर टूट जाती हैं। जिसके कारण एनीमिया तथा अन्य जटिलताएं जैसे कि वेसो- ओक्लुसिव क्राइसिस, फेफड़ों में संक्रमण, एनीमिया, गुर्दे और यकृत की विफलता, स्ट्रोक आदि के कारण रूग्णता और मृत्यु की सम्भावना होती है।
सिकल सेल के रोगी दो प्रकार के होते है, सिकल सेल वाहक (लक्षण रहित/मंद लक्षण) एवं सिकल सेल रोगी (गंभीर लक्षण)। प्रथम प्रकार अर्थात सिकल सेल वाहक व्यक्ति रोग के वाहक के रूप में काम करते हैं अर्थात उनमे सिकल सेल के रोग के लक्षण स्थायी न होकर कभी – कभी दिखाई देते है। फिर भी ये व्यक्ति अपने बच्चों को वंशानुगत यह रोग दे सकते हैं। दूसरे प्रकार के सिकल रोगी वह व्यक्ति होते है जिनमें रोग के लक्ष्ण स्थायी रूप से रहते हैं, जिससे उनके शरीर का विकास रुक जाता है। ये लोग निश्चित ही अपने बच्चों को वंशानुगत यह रोग देते हैं। सिकल सेल की पहचान विशेष रक्त जांच से ही की जा सकती है। जोड़ों में सूजन या दर्द होना, पित्ताशय की पथरी, बार- बार बुखार या जुकाम होना , तिल्ली का बढ़ जाना, लीवर पर सूजन आना, बच्चों का विकास न होना, रोग प्रतिरोधक शक्ति घटने से दूसरी बीमारियों का आसानी से होना आदि, इस बीमारी के लक्षण है। यदि रोग का निदान न किया जाये तो जरुरी उपचार न मिलने से बचपन में ही बच्चे की मृत्यु हो सकती है।